बुधवार, 11 मई 2011

"युवराज" का सालाना बहादुरी करतब

  
             वैसे तो हम लोकतंत्र के पुजारी हैं फिर भी हमारे यहाँ परम्पराएँ राजतन्त्र की ही निर्वहन की जाती है | तभी तो हमारे यहाँ एक दिवंगत र है, एक राजमाता, एक युवराज और एक युवराज्ञी भी है | सारा मंत्रिमंडल इसी राजपरिवार के दिशानिर्देश पर कार्य करता है और इसके २५-३० सदस्यों की लगाम एक कौटिल्य से भी बड़े अर्थशास्त्री को दे रखी है, जो खुद कठपुतली बना है, राजमाता के आगे  | काहिर हमारे कौटिल्य जी का बुडापा हावी हो चला है तभी तो लगाम संभाले नहीं संभलती है और कोई न कोई बिदक ही जाता है | अब उसे काबू में करना तो हमारे प्रधान जी के बस का ही नहीं है | अब राजमाता इतने आसानी से कैसे सब छोड़ दें इसीलिए उन्होंने पुरे कार्य पे अपना प्रभाव जमाया हुआ है | अब "युवराज" भी तो खाली  बैठ नहीं सकते वरना उनके दिमाग में शैतान बसेरा न डाल ले इकी चिंता उनसे ज्यादा उनकी बहन को रहती है, इसीलिए हमारे "युवराज" कुछ न कुछ नया इजाद करने की जुगाड़ में रहते हैं | इससे एक तो उनकी गाहे-बगाहे चर्चा होती रहती है और चीन में जैसे खुद सम्राज्ञी त्शी अपनी सत्ता को संबल देती थी यहाँ ये कार्य "युवराज" कर लेते हैं, आखिर ये भारत जो ठहरा |
           हमारे "युवराज" अधेड़ युवा हैं, तो युवाओं से लगाव होना स्वाभाविक  है इसीलिए अपने प्रयासों की जननी भी उन्हें ही बनाया | देश के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में चुनाव के समय अपने ही अनुचर संगठन में प्राण फूंक दिए और उम्मीदवारों ने भी उनके पोस्टर लेकर ही प्रचार करते रहे लेकिन पता नहीं  उनके विरोधियों न्र ऐसा क्या खाया की सात साल पहले छिनी सत्ता, एक झटके में वापस मिल गयी | और "युवराज" को मलाल इस बात का नहीं था की पराजय हो गयी बल्कि सदमे में तो वो इस बात से थे कि जहाँ भी वे प्रचार करने गए तो उन्हें कितना युवा समर्थन मिला, युवतिओं ने तो उनके बाट जोहते हुए निर्जल रहते हुए अपने पलक-पांवड़े  बिछा दिए फिर यहाँ पर क्या हुआ इस करिश्माई छवि को | ये बात दीगर है की इतना समर्थन देखकर किसी भी राजा को भ्रम हो सकता है कि वाह, मैं कितना करिश्माई हूँ | पर जनाब ये जनता है अगर इसके मन को हर कोई यूँही भांप लेता तो पिछले चुनावों में रथ वाले बाबाजी ही विजयरथ दौड़ा रहे होते |
           लेकिन वह इंसान ही क्या जो ठौर के आगे झुक जाये...तो "युवराज" ने भी इसे सालाना बहादुरी करतब का अभ्यास करार दिया और जुटे नयी रणनीति के साथ, नए व्यवधान को दूर करने के लिए | इस बार नज़र टिकाई बुद्ध के स्तूप पर आधिपत्य करने के लिए यहाँ विरोधी तो वही शेर जैसे थे लेकिन इस बार साथ में एक सवा शेर भी है जो "युवराज" को उनकी ही चाल से मात देना जानता है | वैसे भी यह स्थान विश्व का सबसे प्राचीन विद्यालय है तो जब लगा की "युवराज" फंस रहे हैं तो सारा राजपरिवार अपनी सम्पूर्ण ताकत के साथ लग गया उनके साथ | परन्तु अंततः परिणाम यहाँ भी वही ढाक के तीन पात की तरह ही आया | पिछले बार जहाँ चारों खाने चित्त हुए थे वहीँ यहाँ पर सिर्फ चार खाने ही मिले ताकि खड़े रह सकें | आखिर राजपरिवार का इतना सम्मान तो करना ही था | 
         अब हमारे भले से "युवराज" को कौन समझाए कि बेकारी के इस देश में कई बार जो भीड़ भ्रम में डाल देती है वो सच नहीं होती | सच तो यह है कि उसको ऊपर से देखने और भीतर से समझने में खाई जितना अंतर है जिसे पाटने के लिए नए विचारों के साथ-साथ उसे सच रूप में जानने कि आवश्यकता है | उसके लिए खाई को भरने  कि नहीं अपितु उस पर संभावनाओं  का पुल बनाने  कि है...वरना
सारे "सालाना बहादुरी करतब" फुस्स हो जायेंगे!!!

(संदर्भ- दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव और बिहार चुनाव)
(साभार-एशियन पेंट्स एपेक्स विज्ञापन)