मैं अक्सर अपने दोस्तों से लड़ जाता हूँ कि भाई मैं तेरे जैसा नहीं हो सकता क्योंकि मैं, मैं हूँ। दरअसल ये मेरे अहम की लड़ाई नहीं होती बल्कि ये उस विविधता की लड़ाई है, जो इस दुनिया को बहुत खूबसूरत बनाती है।
इसे थोड़ा दूसरे तरीके से समझते हैं। फ़र्ज़ कीजिये एक शेर है जो जंगल में रहता है और आशिक मिजाज है। सारी शेरनियां उसे पसंद करती हैं और उस पर लट्टू हैं। जंगल के और शेर इस बात से जलते हैं और उसी शेर की तरह होते चले जाते हैं। लेकिन इसी समय में एक और शेर है जो उसके जैसा नहीं है। वह दिल फेंक आशिक़ न होकर शालीन है और यही एक बात उसे औरों से अलग करती है। कुछ समय सभी शेरनियां एक नए साथी की तलाश में निकलती हैं और वो उन सभी शेरों को नहीं चुनती जो पहले वाले शेर जैसे हो गए बल्कि वो चुनती हैं इस शेर को जो अपनी बात पर अटल रहा।
हो सकता है ये थोड़ा गलत उदहारण हो लेकिन आप मेरी उस बात के मर्म को समझिए जो मैं कहना चाह रहा हूँ। समानता अच्छा विषय है और इसे होना चाहिए लेकिन एकरूपता से हमेशा बचना चाहिए वरना फिर हमारे पास सिर्फ शेर ही होंगे, बाघ, हिरण, मोर वगैरह नहीं।
यही वह बात है जो मैं अपने दोस्तों से कहता हूँ कि अगर मैं भी उनके जैसा हो गया तो फिर हमारे बीच आकर्षण, मतभेद, कहानियां सब खत्म हो जायेंगे और इसके बाद क्या हमारी सभ्यता ठहर नहीं जाएगी ?
फ़र्ज़ कीजिये कि आप सब जो इस ब्लॉग को पढ़ रहे हैं वो सब भी मेरी तरह ही देखने, बोलने और सोचने लगें तो हमारी दुनिया कैसी होगी। मेरे हिसाब से कुछ-कुछ रोबोटों जैसी। आप इस ब्लॉग को पढ़ें, समझें या यूँहीं अनदेखा कर दें लेकिन अपने का समर्पण नहीं करें।
हॉलीवुड की एक फिल्म है "आई रोबोट" जिसमें एक रोबोट अपने जैसे कई रोबोट बनाकर इंसान से लोहा लेता है। इसके बाद मानव और मशीन की जंग छिड़ जाती है। ख्याल और रचनात्मकता के हिसाब से यह फिल्म एक अच्छी फिल्म है लेकिन अगर ये हकीकत में हो तो सोचिये कैसा होगा?
सारी दुनिया के लोग एक जैसे होंगे, एक जैसे दिखेंगे और एक जैसा सोचेंगे और एक जैसा खाएंगे और और भी बहुत कुछ एक जैसा करेंगे, उनकी नस्लें भी वैसी होंगी। तब कितनी नीरस होगी वह दुनिया क्योंकि फिर आप किसी को निहारना नहीं चाहेंगे, किसी को घूरना भी नहीं चाहेंगे। आपके लिए ख़ूबसूरती और प्रेम के मायने नहीं रह जायेंगे। आपके शब्दकोष में मतभेद और विचारधारा जैसे शब्द नहीं होंगे। तब शर्म-बेशर्म नहीं होगा। सही-गलत, अच्छे-बुरे की परिभाषाएँ भी बेमानी होंगी। सोचिये तो सही कितना उबाऊ होगा ऐसा संसार ?
लेकिन अगर उस समय कोई अपनी अलग बात पर अडिग रहने वाला शेर हुआ तो उसके लिए पूरी दुनिया का तानाशाह बनना कितना आसान होगा...आप इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते?
हमारी दुनिया अन्य ग्रहों की तुलना में शायद इसीलिए इतनी सुन्दर और रोचक है क्योंकि यहाँ विविधता है। इंसानों को जो बात अन्य प्राणियों से श्रेष्ठ बनाती है वो यही है कि वह ज्यादा बेहतर तरीके से सोच सकता है और यही सोच उसे एक दूसरे से अलग करती, मतभेदों, विभिन्नताओं और विचारधाराओं का निर्माण करती है।
अब इसी पहलू को अगर संस्कृति, विचारधारा एवं राजनीति के संबंध में समझने का प्रयास करें तो बात ज्यादा स्पष्ट तरीके से उभरकर सामने आएगी।
अक्सर हमें बाध्य किया जाता है कि कोई अमुक विचारधारा की बात ही ठीक है और बाकि सब बकवास है। फिर यही बात राजनीति में उतर आती है कि हमारी पार्टी का एजेंडा ठीक है बाकि सब बेकार की बातें करते हैं। भारत में वर्तमान राजनीति का आकलन करेंगे तो स्थिति स्वतः स्पष्ट हो जाएगी। एक विचारधारा को स्थापित करने का लक्ष्य ही होता है कि शासक अपनी सत्ता को टूटने नहीं देना चाहता फिर वह चाहे वामपंथी हो या दक्षिणपंथी। इसलिए आजकल कैडर आधारित राजनीति जोर पकड़ रही है क्योंकि कैडर बनने के बाद आप अपने प्रश्नों की विविधता का त्याग कर देते हैं।
जब इसी बात को आप वैश्विक स्तर पर करते हैं तो वहां अर्थव्यवस्थाऐं जुड़ती हैं। संस्कृतियों का मिलन होता है लेकिन क्या वाकई ये मिलन हो रहा है ? संस्कृतियों में एकरूपता लाने का प्रयास पहचान और वर्चस्व की जंग बनने लगता है क्योंकि मजबूत (शासक) हमेशा चाहता है कि सब उसके जैसे हो जाएँ ताकि उसकी सत्ता पर कोई आंच नहीं आये लेकिन मानव स्वभाव से विद्रोही होता है क्योंकि ये उसके जानवर से इंसान बनने के दौरान जीन में विकसित हो चूका है और वो कंही न कंही अपने इस स्वाभाव को बचाने का प्रयास करता है।
ज़रा सोचिये कि रूस और अमेरिका में एक जैसा खाना, रहन-सहन, बोलचाल हो तो कैसा होता? अगर तनी भाषाओं का, शब्दों का, भावनाओं का संकलन नहीं होता तो कैसा होता? फिर हमे जानवर से इंसान बनने की जरुरत ही क्या थी ? काम तो चल ही रहा था आगे भी चल जाता।
दुनिया में अगर कोई विरोधाभास नहीं होगा तब तो दुनिया की सारी तकलीफों का अंत हो जायेगा ??
इसीलिए हम अलग रहें लेकिन एक रहें तो चलेगा किन्तु हम सबका एक जैसा हो जाना यह ख्याल ही कितना भयावह है...