मंगलवार, 16 नवंबर 2010

अब भी बाकी है!


काली रात का अँधियारा,
डूबते को तिनके का सहारा,
हवा में फैला कोलाहल सारा,
बेगुनाहों की वो सुगबुगाहट, 
अब भी बाकी है!


मध्यरात्रि का अर्द्ध प्रहर,

फैला बस ज़हर ही ज़हर,
बरसा क्या भयानक कहर!
अनजान से खतरे की आहट,
अब भी बाकी है!


मासूम-बेगुनाह-निर्दोष,
भाग रहे बेसुध-बेहोश,
तय करें किस, किसका दोष?
गले में अटकी वो हिचकिचाहट, 
अब भी बाकी है!


दोष छिपाने के प्रयास हैं उत्तम,
अन्याय मिला बड़ी देर से सर्वोत्तम,
न्याय की मार-मार रहा उच्चत्तम,
ह्रदय में इसकी कड़वी कड़वाहट, 
अब भी बाकी है!


सिसक-सिसक साँस लेती सिसकियाँ,
गड़े दर्द ने बाहर निकाल ली उँगलियाँ,
जिंदगी जीना भूल गई अनगिनत जिंदगियां,
आँखों में लगते धुंए की वो चिनमिनाहट,
अब भी बाकी है!


(सन्दर्भ भोपाल गैस त्रासदी)

सोमवार, 15 नवंबर 2010

"युवराज" का "रिअलिटी शो"

देश के "युवराज" राहुल गांधी
 पिछले दिनों एक बड़ी दुर्घटना से मेरा परिचय हुआ, अब जो बात कहने जा रहा हूँ उसे लेकर घटना या दुर्घटना की बहस में न ही पड़ा जाये अन्यथा पाठक के घायल होने का दारोमदार भी मेरे ऊपर ही आ जायेगा!

 हाँ तो मुद्दा है अपने देश के इकलौते "युवराज" की तथाकथित "जनरल" की यात्रा का,अब इसे सेना का "जनरल" कतई न समझे वो तो आजकल खुद आदर्श की तलाश में हैं| खबर इतनी चौकाने वाली थी कि  मेरे तो दिमाग के परखच्चे ही उड़ गए..ठीक है "युवराज" हैं तो उन्हें सारे अधिकार हैं, वे कभी भी ,कुछ भी,कँही भी, कैसे भी कर सकते हैं,प्रजा का दुःख हो या उनके तीमारदारों का उन्हें किसकी परवाह है|


  वैसे इस खबर ने मुझे अचानक तपस्या से नहीं जगाया क्यूँकि "युवराज" इससे पहले भी कई शिगुफे छोड़ते रहे हैं फिर चाहे वो खाली तसला भरा श्रमदान ही क्यों न हो|

 हाँ,तो प्रश्न घूम फिर कर वँही आ गया कि आश्चर्य कहाँ से उत्पन्न हुआ, आश्चर्य की सीमा का उल्लंघन तो तब हो गया जब सारे खबरिया चैनलों ने प्रचार का हल्ला बोल दिया कि यह अनियोजित और अचानक घटी दुर्घटना है,इसकी खबर कानोकान "दीदी" तक के घर नहीं पहुँची| तब मुझे अनायास ही याद आया कि अरे ये उस देश की ही दुर्घटना है जहाँ का प्रधानमंत्री साँस लेने से पहले भी "राजमाता" से स्वीकृति लेता है या उस देश की बात है जहाँ पर हर "रिअलिटी शो" तक पूर्वनियोजित व पूर्वलिखित होते हैं तो क्या ये मुमकिन है कि ये  कहानी "प्री-स्क्रिप्टेड" नहीं होगी?  खैर एक बात और थी जिसने अचंभित किया वो ये कि आखिर "राजमाता" ने अपना "पुत्रमोह" छोड़ा कैसे होगा जबकि उन्हें अपने ही इतिहास से अनुमान है और फिर अंतत: देश कि बागडोर संभालनी तो "युवराज" को ही है|

 पर असली वजह तो कुछ और है अब इस देश के "युवराज" को ऐसा करना क्यों पड़ा तो साफ सी बात है कि जब देश के प्रधानमंत्री कह रहे हों कि हम 8 % कि दर से बढ रहे हैं वो दीगर है कि फिर चाहे वो गरीबी हो,भुखमरी हो या जनसँख्या सबके आंकड़े आस-पास ही नज़र आयेंगे तो यह मुमकिन है कि अब से सारे वीआईपी "जनरल" में और सारे किसान "ऐरोप्लेन" में सफ़र करें| वैसे भी मोहन ने तो साक्षात् अवतरित होकर घोषणा कर ही दी थी कि सारे खासमखास अब से अपने झोपड़े में रहे और पशुओं वाली यात्रा करें("राजमाता" के चहेते कि भाषा में)!!!

 तो भई विश्व के इस सबसे बड़े लोकतंत्र में कुछ भी आश्चर्य नहीं और आपके "युवराज" साल में एक बार बहादुरी करतब नहीं दिखाते वो तो हर दिन कुछ नया "रिअलटी शो" लाते हैं कभी देशी तो कभी - कभी विदेशी!!!