शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

एक कल्कि अवतार ये भी!

इन्सान या कल्कि अवतार
 मैं तो सबसे ज्यादा उनको लेकर उनके समर्थकों द्वारा किये जाने वाले दावों से खौफ खा जाता हूँ। अभी मोदीजी के हैदराबाद की रैली के बाद की ही बात है मेरे फेसबुक के खाते पर मैंने अपने एक मित्र की उनके सम्बन्ध में एक पोस्ट देखी तो मैं तो बेहोश होते-होते बचा, उसके कुछ अंश मैं यहाँ आपके साथ साझा करना चाहूँगा-

मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने से विश्व में क्या-क्या बदल जायेगा- 
दरणीय  मोदी जी की एक बात का मैं कायल हूँ, जब वो कहते हैं कि आप मेरे खिलाफ हो सकते हैं या मेरे साथ लेकिन आप मुझे नजरंदाज नहीं कर सकते। बात भी ठीक है अब उनके द्वारा कभी न कभी ऐसा कुछ कह दिया ही जाता है कि उसके पक्ष-विपक्ष में से कोई एक रास्ता चुनना ही पड़ता है, उसे नजरंदाज तो नहीं किया जा सकता। पहले तो अमेरिका की अर्थव्यवस्था डूब जाएगी क्यूंकि भारत तब न तो अमेरिका से हथियार खरीदेगा और न ही उसकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का सामान भारत में बिक सकेगा क्यूंकि मोदी जी स्वदेशी को बढ़ावा देंगे। दूसरा चीन भी बर्बादी के मुहाने पर खड़ा होगा क्यूंकि उसका 40% व्यापार खत्म जायेगा जो चीन अपने माल को भारत में डंप करके करता है इसका भी कारण आदरणीय मोदीजी द्वारा स्वदेशी भारतीय व्यापारिक तंत्र को मजबूत करना होगा यही नहीं उनके समर्थक पाकिस्तान को लेकर जो विचार रखते हैं उसके उदाहरण की आवश्यकता नहीं है लेकिन अरब देशों को लेकर भी कहा जा रहा है कि उस मरुस्थल में अभी और सूखा पड़ेगा क्यूंकि भारत अपना तेल आयात भी न्यूनतम स्तर पर ले आएगा और मोदीजी नवीकरणीय ऊर्जा को प्रमुख स्थान देंगे।

 जब हम इन दावों की पड़ताल करते हैं तो लगता है कि सब खोखला है और अगर ऐसे ही खोखले दावे करने वाले समर्थकों के दम पर अगर कोई ऐसा व्यक्ति प्रधानमत्री बन भी जाये जिससे जनता इतनी उम्मीदें बांध ले कि वो उसके बोझ तले ही दब जाये और खुलकर कोई फैसला भी न ले पाए तो उसका आने वाला भविष्य कितना अंधकारमय होगा। क्या भाजपा को इन भ्रांतियों पर रोक लगाने की आवश्यकता नहीं है क्यूंकि अगर जनता ने इतनी उम्मीद से उसे चुन भी लिया तो खरे न उतर पाने के बाद उसका क्या हाल होगा।

 अब जरा इन दावों पर गौर करे अगर मोदी जी को अमेरिका से इतनी नफरत ही होती या पश्चिमी देशों को उन्हें रुलाना ही होता तो क्यों वो हर साल वाईब्रेंट गुजरात जैसी गोष्ठी करते ताकि उनके यहाँ निवेश बढे। हम सभी बहुत अच्छे से जानते हैं कि आदरणीय मोदीजी नीतिओं में पूरी तरह पश्चिमी मॉडल को ही अपनाते हैं तो फिर उससे दुश्वारी क्यूँ होगी तो उनके समर्थकों को भी यह ध्यान रखना होगा। फिर उनको अमेरिकी वीजा दिलाने के लिए भी तो भाजपा लायलित है।


 हमें इस बात पर भी तो गौर फरमाना होगा कि यदि अरब देशों से आयात बंद हो गया तो अंबानी की जामनगर रिफाईनरी का क्या होगा। क्या मोदी उनको नुकसान में जाने के लिए कहेंगे जबकि वो तो गुजराती हैं । और माने या ना माने उनके अनुसार भारत की सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था का रूख बदलता है। 

इस बात पर थोडा गहन विचार करें तो हमे यह भी सोचना होगा कि किस तरह की सत्ता हम अब चलाना चाहते हैं जो सब कुछ तबाह और खत्म करने पर उतर आये।


 इससे तो हम भारत की सहिष्णु, शांतिप्रिय, गुटनिरपेक्ष और विश्व के साथ सहअस्तित्व वाली उदार छवि का ही सर्वनाश कर देंगे। अगर मोदी इतने की विध्वंसकारी हैं तो क्या हक है उन्हें और उनके समर्थकों को कि सरदार पटेल के नाम को इस्तेमाल करते हुए स्टेचू ऑफ यूनिटी बनायें । क्यूंकि उनके आने के बाद तो सब अलग-थलग होने का डर है। अतः मेरा विनम्र अनुरोध है आदरणीय मोदीजी से कि हम उन्हें नजरंदाज करना शुरू कर दें उससे बेहतर है कि वो इस तरह की भ्रांतियों को खुद से स्पष्ट करते हुए दूर करें क्यूंकि उनके समर्थक तो उन्हें भगवान विष्णु का कल्कि अवतार साबित करने में लगे हैं जिसका जन्म कलयुग का अंत करने को हुआ हो।

मंगलवार, 13 अगस्त 2013

ये बनायेंगे भारत को विश्वगुरू...

Redirect from "Apne Des Me"

मैं सोच ही रहा था कि इस ब्लॉग की शुरुआत कहाँ से करूँ क्यूंकि भारत है ही इतना महान देश कि आप जहाँ से शुरू करते हैं उसके पीछे कुछ और मिल जाता है तो लगता है यंही से शुरू करना चाहिए, अब आजकल फेसबुक पर आदरणीय मोदी जी के समर्थक कैसे-कैसे पोस्ट कर रहे हैं। उसकी एक बानगी यंही देख लीजिये…
ये इंसान ही है न...?
"मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने से विश्व में बहुत सारे दुष्परिणाम होंगे... 



1.अमेरिका की अर्थव्यवस्था डूब जायेगी और अमेरिका बर्बाद हो जाएगा क्योंकि भारत तब न तो अमेरिका से हथियार खरीदेगा और न ही उसकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का सामान भारत में बिक सकेगा इसका सबसे बड़ा कारण यह होगा कि मोदी जी स्वदेसी को आगे लायेंगे। 

2 .चीन ,जो विश्व की वर्तमान में सबसे उभरती ताकत और अर्थव्यवस्था है, वह भी बर्बादी के मुहाने पर आ खड़ा होगा। उसका 40 % व्यापार ( जो कि भारत में चोरी -छिपे डंप होता है ) खत्म हो जाएगा इससे चीन को बहुत बड़ा धक्का लगेगा , जिसका कारण होगा मोदी जी का भारतीय व्यापारिक तंत्र को आगे लाना यानी स्वदेसी को आगे लाना होगा।



3 .अरब देश, जो कि मरुस्थल में है वहां पर और भी सुखा पड़ने की सम्भावना है, क्योंकि भारत अपना आयात न्यूनतम स्तर पर इन देशो से कर देगा, क्योंकि मोदी जी भारत में सौर उर्जा और प्रकृतिक गैसों के प्रयोग को प्रमुखता देने वाले है। जो कि पर्यावरण हितैषी ऊर्जा होगी इसीलिए अरब देशी में भी कुलबुलाहट शुरू हो गयी है। 



4. पकिस्तान ,जो कि आतंक के बलबूते पर जीता है और आतंकवाद का सबसे बड़ा उत्पादक देश है ! उसकी दुकानदारी बंद हो जाएगी क्योंकि मोदी जी के प्रधानमंत्री बन जाने के बाद उसकी एक ज़रा सी गलती भी उसको बर्बाद कर देगी और यह भी हो सकता है कि भारत का मानचित्र दुबारा 1947 से पहले वाली स्थिति में आ जाए। 



5.कांग्रेस के बारे में भविष्यवाणी ही है कि वह 137 साल की उम्र में मर जायेगी। कांग्रेस का जन्म 1885 में एक गोरे अंग्रेज के हाथों हुआ था , 137 साल बाद अर्थात 2022 में ही समाप्त हो जाएगी और हो भी जानी चाहिए।


यह इस बात की ओर भी इंगित करता है कि जब किसी देश के आंतरिक मामले अन्य देशों पर प्रभाव डालते हैं, तो वह देश निश्चय ही सारे विश्व को अपने प्रभाव में ले आता है ! शायद मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से भारत के विश्वगुरु बनने की शुरुआत हो जाए और 2022 में राष्ट्रघाती कोंग्रेस के सम्पूर्ण नष्ट होने के बाद भारत विश्वगुरु का स्थान प्राप्त कर ले तब भारत का एक रुपैया पचास अमेरिकी डालर के बराबर होगा।
इसीलिए अमेरिका नरेन्द्र मोदी जी को वीजा नहीं देता।
वह नहीं चाहता कि मोदी जी प्रधानमंत्री बने ,चीन तो बिल्कुल नहीं चाहता ,पाकिस्तान भी नहीं चाहता , कांग्रेस भी नहीं चाहती। इसीलिए सब विघटनकारी शक्तियां एकजुट हो रही है।
यह एक महापुरुष के आगमन का संकेत है।"



सोचने वाली बात- यह सिर्फ भारत में ही मुमकिन है कि यहाँ कोई कुछ भी सोच सकता है। नरेन्द्र मोदी, और एक महापुरुष, अब बताइए कि इससे भी ज्यादा कुछ हास्यापद हो सकता है और भगवान से दुआ कीजिये कि भारत 1947 से पहले वाली स्थिति में बिल्कुल भी न आये क्यूंकि उसे फिर से एक करना अब बड़ा मुश्किल हो जायेगा और ऐसी स्थिति में देश को लाने वाला इंसान भी विघटनकारी नहीं होगा। अब इसको पढ़ने के बाद तो लगता है कि जैसे ये व्यक्ति इंसान न होकर कुछ और ही है क्यूंकि इतना कुछ तो पूरी महाभारत में भगवान कृष्ण भी न कर पाए थे।

शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

मैं क्या लिखूँ?


 अक्सर ख्याल आता है कि कुछ लिखूँ, फिर मन में सोचता हूँ कि क्या लिखूँ? अगर हर कोई लिखने में ही जुट गया तो पढ़ेगा कौन ? वैसे सोचिये क्या समां होगा वो जब हर कोई सिर्फ और सिर्फ लिखेगा। आप अपनी कोई भी बात किसी तक सिर्फ लिख कर ही पहुंचाएंगे। वैसे भी तकनीक ने ये आसान कर ही दिया है, अब हमारी ज्यादातर बाते टेक्स्ट मैसेज से ही हो जाती हैं और बाक़ी बातें हम ईमेल और चैट से कर लेते हैं।



 अभी कुछ दिनों पहले देश का तार, बेतार हो गया तो मेरे अन्दर एक डर बैठ गया कि कंही अब अगला नंबर अंतर्देशीय पत्र (इनलैंड लैटर) का न हो गरीब आदमी जैसे भी हो दो-ढाई रुपये का जुगाड़ करके अपने परिजनों का हाल-चाल जान लेता है। खैर कुछ समय पहले ये घोषणा हुई थी कि सरकार हर किसी को मोबाइल देगी खासकर के गरीब को। मैं तो सोच रहा हूँ कि चलो अच्छा है इस मामले में तो हम चीन से आगे होंगे लेकिन ये कब तक होगा वो इस देश में सिर्फ राम ही बता सकते हैं।

 मैंने अपनी अब तक की उम्र में तार का चलन नहीं देखा, हाँ लेकिन उसके दिल दहला देने वाले कई किस्से अपने दादी से सुने जरुर हैं कि कैसे तार आते ही घर में हडकंप मच जाता था, सब कोई अपना काम छोड़ के उसे सुनने रुक जाता, लोग सीढियां चढ़ते-चढ़ते कब उतरने लगते उन्हें पता भी नहीं चलता और कोई अच्छी खबर होती तो जान में जान आती, वरना बोरिया-बिस्तर बंधना शुरू हो जाता। पर एक चिंता हमेशा बनी रहती कि क्या नया खर्चा बढ़ेगा उस महीने और उसका जुगाड़ कहाँ से होगा उन पैसों का।

 वैसे अच्छा ही हुआ कि इस सफ़ेद हाथी का हुक्का-पानी बंद कर दिया गया, अन्यथा पुरातनपंथियों का बस चले तो उसे भी चलाते रहें। हमारे यहाँ तो आदत है कि काम हो न हो अगर कुछ है तो ढोते रहो। कबाड़ जमा करने का शौक जो है, अब आप सरकारी दफ्तरों को जाकर ही देख लीजिये जितने पैसों में उनका डिजिटलाईजेशन हो सकता है उतना पैसा उनके कबाड़ को बेच के निकल आये लेकिन नहीं हम अब भी उसी कबाड़ को ढोए जा रहे हैं। इसी कबाड़ के चक्कर में आम आदमी को सरकारी दफ्तर के चक्कर चकरघिन्नी की तरह काटते रहना पढ़ता है।

 लेकिन अगर अंतर्देशीय पत्र की बात की जाए तो उसका मिजाज थोड़ा अलग है। पुराने समय में बेटियां अपने मायके इस चिट्ठी से ही अपने ससुराल की बातें और अपनी आपबीती बयां करती थीं, माँ-बाप भी उसे पढ़ते-पढ़ते पूरे आंसुओं से भीग जाते थे। लोगों के रूटीन में शामिल था कि चिट्ठी लिखें तो कुछ दोस्तों से हमेशा चिट्ठी लिखकर ही हाल-चाल पूछने में आनंद था। कई सारे महान लोगों ने इन चिट्ठियों में अपना पूरा-पूरा इतिहास लिखा तो साहित्यकारों ने साहित्यिक रचनाएँ कर डालीं। कईयों के पत्र आज करोड़ों में संग्राहक खरीदते भी हैं।लाम पर गए सिपाहियों का अपने घर वालों से संपर्क करने का एकमात्र जरिया होता था। खैर वो तो आज भी बहुत हद तक इसी पर आश्रित हैं बेचारे, तकनीक के विकास ने उनको अब भी कोई खास लाभ नहीं पहुँचाया । 

 बहरहाल मैंने बात शुरू की थी कि मैं क्या लिखूं और उसी बात में इतना सब कह गया। लिखने का जो आनंद पन्ने पर है वो किसी और जगह नहीं। अब यही वजह ढूंढ़ रहा हूँ की पन्ने से इतर कैसे और क्या लिखा जाये, जो आपको कुछ सूझे तो बताना।