बुधवार, 8 अप्रैल 2015

क्या चाहते हैं ब्योमकेश से ?

हाल में आई डिटेक्टिव ब्योमकेश बख्शी  को लेकर कई  बड़े फिल्म समीक्षकों ने कोई खास अच्छी समीक्षा नहीं दी। सभी ने फिल्म को बहुत से पहलुओं पर नकार दिया, लेकिन मैंने फिल्म देखी है।

 फिल्म शुरुआत से ही रोचकता पैदा करती चलती है।  एक हत्या और उसके हत्यारे की तलाश यही फिल्म का सार है,  जो आम जासूसी फिल्मों का मुख्य पहलू होता है। फिर उस हत्यारे की तलाश के दौरान होती अन्य हत्याएं, सबूतों का बनना बिगड़ना फिल्म को आगे बढ़ाते हैं, और इसमें भी यही चलता है।

 शरदिंदु बंधोपाध्याय के चरित्र ब्योमकेश बख्शी (सुशांत सिंह राजपूत) को फिल्म में निर्देशक दिबाकर बनर्जी ने शुरुआत से बुना है। वह कॉलेज से निकला है, प्यार में असफल हुआ है और नौकरी की तलाश में है। उसी के कॉलेज का साथी अजीत बंधोपाध्याय (आनंद तिवारी) उसे अपने गायब पिता की तलाश करने को बोलता है और वो जुट जाता है काम में। फिल्म में ब्योमकेश अपना पहला केस सुलझा रहा है, तो गलती होना लाजिमी है और दिबाकर ने उससे वो गलती भी करवाई है।

 फिल्म शुरू होने के कुछ समय बाद ही बख्शी को अजित के पिता की लाश मिल जाती है। लेकिन असली सवाल है कि आखिर उनकी हत्या क्यों हुई ? बस इसी गुत्थी को सुलझाने में कहानी आगे बढ़ती जाती है।
 फिल्म में 1940 के दौर का बंगाल है।  द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू हो चुका है और जापानी सेना कलकत्ता पर आक्रमण करने के लिए आगे बढ़ रही है और इसके लिए उसे कुछ कालाबाजारियों का सहयोग चाहिए। बाकी एक जासूसी फिल्म की कहानी इससे ज्यादा बताना घातक होगा।

 फिल्म में उस समय के कलकत्ता को दिबाकर ने शानदार तरीके से पेश किया है। बैकग्राउंड स्कोर फिल्म की जान है और फिल्म की गति एक समान है। हालांकि यह थोड़ी धीमी है लेकिन फिल्म को समझने के लिए सही है।  आजकल भोजपुरी का इस्तेमाल हिंदी फिल्मों का एक अंग बनता जा रहा है, और इसमें इसे बखूबी इस्तेमाल किया गया है। फिल्म का लाइट इफ़ेक्ट प्रभाव पैदा करता है।

 सुशांत ने अच्छा अभिनय किया है, लेकिन वो और अच्छा कर सकते थे। फिल्म में अंगूरी देवी का किरदार निभाने वाली स्वस्तिका मुखर्जी ने अभिनय की छाप छोड़ी है। फिल्म में सहयोगी कलाकारों ने अच्छा अभिनय किया है। फिल्म में खलनायक का किरदार निभाने वाले नीरज काबी बहुत प्रभावित करते हैं।
 दिबाकर इसे एक ब्रांड के तौर पर स्थापित करने में सफल रहे हैं।  इसकी अगली कड़ी बनने की पूरी सम्भावना है।

 एक जासूसी फिल्म से अपेक्षा होती है कि वो आपको सीट से हिलने का मौका भी न दे और डिटेक्टिव ब्योमकेश बक्शी इस काम में पूरी तरह सफल है। फिर अब और क्या चाहते हैं आप ब्योमकेश से ?