मंगलवार, 21 जनवरी 2014

मेरे सपनों का 'आप'राध

मैं अपराधी नहीं हूँ लेकिन आजकल लोग मुझे 'आप'राधी जरुर कहने लगे हैं। अब कुछ दिन पहले ही की बात है मैं सपने में अरविन्द  से मिला और कुछ प्रश्न किये जैसे कि क्या आप वाकई इतने ईमानदार हैं कि वजन तोलने की मशीन पर भी बिना कपड़ो के खड़े होते हैं ताकि वजन में कोई गड़बड़ी न हो या इतने धरनेबाज कि आपकी पत्नी आपके लिए खाना भी नहीं बनाती क्योंकि उन्हें डर होता है कि कंही खाना ख़राब बना तो आप घर में ही धरना देने बैठ जायेंगे (ये बातें मैं नहीं पूछ रहा ये तो दिल्ली और देश की जनता पूछ रही है मैसेज,मेल और सोशल मीडिया पर ) तो मुझ पर तुरंत आरोप लगा दिया गया कि आपको चायवालों ने भेजा है और आप 'आप' पर प्रश्न करके बहुत गम्भीर 'आप'राध कर रहे हैं।

 तभी अरविन्द मेरे खिलाफ धरना देने मेरे बेड के बगल में ही बैठ गए और और हाय हाय करके मेरा इस्तीफ़ा मांगने लगे। अब मैं तो कुछ काम धंधा करता नहीं यूँही बस कुछ सपने देखता हूँ उसी आम आदमी की तरह जिसकी बात अरविन्द करते हैं तो अब मैं क्या इस आम आदमी के पद से भी इस्तीफ़ा दे दूं।

साभार-www.mysay.in

 अरविन्द अनशन कर ही रहे थे कि मेरे सपने में सुबह-सुबह एक चायवाला चला आया और कहने लगा कि लो इसे भूल जाओ और ये हमारी विकासपरक चाय नारंगी कप में पियो (हालाँकि उसके सारे बर्तन और कपडे भगवा थे लेकिन नारंगी ही मुझे लगे क्यूंकि सुबह-सुबह नींद में आँखे सर्दियों में कहाँ पूरी खुलती हैं )। अब मैं न चाय पियूं न कॉफी तो मुझे क्यूँ उसकी परवाह रही तो सुबह-सुबह मैंने उसकी भी बाईट लेना चाही जैसे मीडिया हर मिनट की अरविन्द की अप्डेट देता है। मैंने  उससे भी पूछ लिया कि ये बताइये कि आपने ऐसे कौन से कर्म किये कि आप चाय वाले से प्रधानमंत्री तक बनने वाले हैं वरना इस देश में तो चायवाला नुक्कड़ से आगे जा ही नहीं पाता। फिर एक और बात कि चाय के धंधे में ऐसी भी क्या कमाई कम थी जो यहाँ चले आये क्यूंकि यहाँ तो ईमानदार कमा ही नहीं पाते। अब चाय वाला मोदी था और मैं समझ नहीं पा रहा था कि गुजरात में मोदी दलित कैसे हो गए या फिर यह भी सरकारी गलती है ठीक वैसी ही जैसी राखी बिडलान के बिड़ला होने में हुई तो उनका वीपी सिंह बढ़ गया और पीछे नारंगी टोपी में खड़ा उनका डॉक्टर मेरे पीछे पिल पड़ा कि आप, 'आप' की तरह प्रश्न पूछकर बहुत बड़ा 'आप'राध कर रहे हैं।
साभार-श्रेयस नवारे

 अब मैं ठगा सा रह गया कि ये भी 'आप'राध है, तो अपराध क्या है ? ये बातें चल ही रही थी कि अंगूठा चूसते हुए,चश्मा लगाये एक लड़का अपनी माँ के पीछे से मेरे सपने में झाँक रहा था। मैंने आवाज देकर उसे आगे बुलाया लेकिन उसने पहले माँ को आगे भेज दिया मैंने कहा अब तो मैं मारा गया क्योंकि माताजी की तो सबको सुननी पड़ती है वो किसी की नहीं सुनती। मैंने  उस बच्चे को पास बुलाया और प्यार से पूछा कि क्या चाहिए इतनी सुबह-सुबह तो वो बड़े मिमियाते हुए बोला कि इन दोनों ने हमारी टोपी चुरा ली और अपने-अपने हिसाब से इस्तेमाल कर रहे हैं। इनमे से एक ने तो मेरी कविता का शीर्षक भी चुरा लिया अब मैं कहां कॉपीराइट की शिकायत करूँ।

 तो मैंने भी कहा बेटा तुम्हारी माँ तो हर फैसला करती है तो उसी से शिकायत कर दो। फिर वैसे भी उस कविता का तुम क्या करते क्योंकि जब तक वो तुम्हारे पास थी तुम उसे ये भरोसा ही नहीं दिला पाये कि तुम इस कविता को कंही प्रकाशित भी करा सकते हो। लोगों को लगा कि चोरी की होगी इसीलिए डर रहा है तो अब अंततः किसी ने चुरा ही ली, और वैसे भी ये मेरा सपना है तुम्हारी माँ वाला तो है नहीं कि सरकार बदलते ही मेट्रो से एयरपोर्ट तक सब गायब हो जाये। बस फिर उसने दहाड़ मारकर रोना शुरू किया और उसकी माँ मुझ पर बरसने लगी कि ये भी कोई तरीका है बच्चों से बात करने का और अगर आप ऐसा कर रहे हैं तो आप बाल 'आप'राधी हैं। 

 अब मेरे सबर ने भी सबर कर लिया कि मैं जो भी बात बोलूं मैं ही 'आप'राधी हो जाता हूँ बस फिर क्या था मैंने अपने बिस्तर के बगल से उतारकर चप्पल पहनी और चला सुबह-सुबह पाखाने की ओर इन सबको पीछे चिल्लाता छोड़कर। अब सुबह-सुबह मैं भी काम के काम न कर इनकी कामचोरी के किस्से सुन रहा था, तो पाखाने में इनका शोर बंद करने के लिए जैसे ही मैंने दरवाजा बंद किया मेरी नींद टूट गयी। फिर क्या था बस मुझे समझ में आ गया कि सारा 'आप'राध मेरे सपनों का ही था।

बुधवार, 8 जनवरी 2014

बदल रहे हैं हम

वैसे तो एक जनवरी भी साल के बाकी के आम दिनो की तरह ही एक आम दिन होता है, लेकिन फिर भी बदलते साल का कुछ रोमांच इसे दिलचस्प बना देता है। वैसे हम खुद लगातार बदलने की प्रक्रिया से गुजरते रहते हैं, कोशिश होती है कि बदलाव अपने में लायेंगे लेकिन साल बदल जाते हैं हम नहीं बदल पाते और वही पुराने ढर्रे पर चलते रहते हैं।
शपथ लेते हुए राखी बिड़ला (बिडलान)
खैर हम बदल रहे हैं ये नजर आने लगा है अगर बात राजनीति से शुरू की जाये तो दिल्ली में अरविंद के मुख्यमंत्री बनने से ज्यादा चौंकाने वाली बात ये रही कि युवा वर्ग की राजनीति में भागीदारी बढ़ रही है, अब युवा राजनीति को गटर नहीं समझ रहा। दूसरी तरफ जो युवा मोदीमय है उसे भी एक अन्य विकल्प नजर आ रहा है। इस बीच जो सबसे ज्यादा अचंभित करने वाली बात है वो है राखी बिडलान का मंत्री बनना। मात्र 26 साल की उम्र में किसी सरकार में मंत्री बनना वो भी बिना किसी राजनीतिक विरासत के इस देश कि राजनीति के बदलने की ओर संकेत करता है। भले ही अभी इन सभी के काम पर व्यापक चर्चा होनी बाकि है और इनके राजनीतिक तरीके पर भी, लेकिन जरा एक दशक या उससे थोड़ा और पहले भी नजर दौड़ाएं तो देश में ऐसा कोई उदहारण नहीं दिखता कि 26 की उम्र में कोई मंत्री बना हो।
एक बड़ा बदलाव अबकी से मुझे पाने प्रधानमंत्री में भी नजर आया कि वो अब राजनीतिक प्रश्नो से बचते नहीं हैं बल्कि उनका जवाब देते हैं जिसकी बानगी इस बार की उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस में आप देख सकते थे। अब ये तो भगवान का कसूर है कि वो कितने भी दमदार हो जाएँ लेकिन नजर ही बेचारे आते हैं। अब इसके लिए कोई भगवान में बदलाव लाये तो मुनासिब है।
हाँ भगवान ने जरुर अब लोगों के घरों तक पहुँचने का अपना टाइम बदल लिया है। पहले टीवी पर वो सुबह-सुबह दर्शन देने आते थे वो भी अक्सर शनिवार और रविवार के दिन लेकिन अब वो भी वीकेंड मानते हैं और शनि-रवि को टीवी से गायब रहते हैं भाई आखिर उनकी भी तो इच्छाएं हैं क्या बदलते दौर में उनका मन नहीं होता होगा कि वो भी न्यू इयर ईव पर पार्टी मनाने जाएँ। समय भी उनका बदल चुका अब तो वो रात को आते हैं प्राइम टाइम पर आत 8 बजे से।
वैसे अब उबके दर्शन करने वाले लोगों में भी बदलाव आया है अब वे  टीवी के सामने रोली-चावल लेकर नहीं बैठते, न ही उन्हें इन सीरियलों के सास-बहू टाइप सीरियलों में बदलते जाने से चिड़ होती है और उन्हें अब जल्द ही इससे भी गुरेज नहीं होगा कि उनके भगवान संस्कृत क्यों नहीं बोलते, उनके लिए तो अच्छा है कि भगवान भी हाईटेक होते जा रहे हैं तभी तो विजुअल इफेक्ट्स के साथ आजकल भगवान साउथ के सुपरस्टार से कम नहीं लगते। इतना ही नहीं दर्शकों को अब धारावाहिकों में भगवान को लेकर दिखाए जा रहे तथ्यों की भी परवाह नहीं, तभी तो मूल शास्त्रों से तमाम असंगतियां होने के बाबजूद भी लोग इसे स्वीकार कर रहे हैं। वरना जोधा अकबर के नाम पर मचा बवाल तो  आप जानते ही हैं वंही अब सीरियल आ रहा है इसी नाम से तो कोई बवाल नहीं। तो लोग थोड़े ही सही धार्मिक रूप से उदार तो हुए हैं।
वैसे एक बदलाव अब मैं अपने घर में भी देखने लगा हूँ मेरी दादी कि उम्र यही कोई 82 के आस-पास होगी जब एक साल पहले उन्हें हमने मोबाइल दिलाया था तो वो उससे बेहद अनजान थी और वैसे भी 80 की उम्र में कौन इस सरदर्दी को पालना चाहता है लेकिन उनकी जिजीविषा और तकनीक के बढ़ते प्रभाव ने उन्हें मोबाइल पर सिर्फ कॉल उठाने तक सीमित नहीं रखा बल्कि खुद से कॉल लगाने में भी दुरुस्त बना दिया है।