बचपन में मुझे गर्मी का बेसब्री से इंतज़ार रहता था। इसकी वजह भी साफ थी। गर्मियों की छुट्टी मिला करती थी तो नानी के घर जाया करते थे। मेरा जन्मदिन भी इसी मौसम में पड़ता है तो वो आमतौर पर नानी के घर पर ही मना करता। उस दिन नानाजी मेरे लिए छोले जरूर बनाते क्योंकि मुझे उनके हाथ के बने छोले बड़े पसंद थे। लेकिन घर के बाकी लोगों को उनके हाथ का आमरस।
नानी के घर पर गर्मियों में रोजाना दूध की रबड़ी वाला आमरस बनता था जो मुझे तब पसंद नहीं था लेकिन माँ थोड़ा बहुत डांट-डपट के खिला ही देती। लेकिन जन्मदिन के दिन मैं राजा, बाकी सब प्रजा। उस दिन मेरे लिए रबड़ी अलग होती और आम अलग से काट के मुझे दिया जाता।
मुझे आम बहुत पसंद है। गर्मियों में पहली बार मुझे आम हमेशा नानाजी के घर पहुंचने के बाद ही मिलता था, क्योंकि घर पर मुझे तब तक आम खाने को नहीं मिलते जब तक बारिश नहीं हो जाती। इसके लिए माँ-पापा दोनों से सख्त हिदायत मिली हुई थी लेकिन नानी के घर आपको बारिश हो या न हो टोकने वाला कौन था? वैसे घर पर आम खाने की मनाही इसलिए थी क्योंकि मुझे शरीर पर दाने या फुंसियां निकल आती थी। अब ये बात और है कि मुझे आज तक आम और शरीर के दानों के बीच का कनेक्शन पता नहीं चला। मैंने जानने की कोशिश भी नहीं की क्योंकि इससे यादें मिट जाने का डर लगा रहता है।
मैं आम का बहुत बड़ा लालची हूँ। तभी पिछले साल जब ऑफिस की एक साथी ने मुझे दोस्तों के साथ बाँटने के लिए अपने घर के आम दिए तो मैंने घर पहुँच के सबसे बढ़िया दो आम सबसे पहले अकेले ही खा लिए बाद में दोस्तों को बताया कि उनके लिए आम आएं हैं।
बचपन में भी घर पर मुझे जब तक आम खाने की मनाही होती थी तब तक मैंगो शेक मिला करता था। मैंगो शेक के लिए आम काटने के बाद हमेशा आम की गुठली बच जाती थी। मुझे आम पसंद था लेकिन आम की गुठली कतई नहीं। मैं गुठली हमेशा मैं छोटे भाई को सरका देता था और खुद छिलकों में लगे हुए आम से संतोष कर लेता।
कई बार मुझे जब मैंगो शेक के लिए आम छीलने को कहा जाता तो मैं जानबूझकर छिलका मोटा छीलता क्योंकि बाद में वो छिलके तो मुझे मिलने थे। इसी बहाने बारिश से पहले घर में आम खाने को भी मिल जाते। खैर इस बात के लिए कई बार माँ की झिड़की भी लग जाती कि ठीक से छीलना है तो छीलो नहीं तो रसोई से नौ दो ग्यारह हो जाओ। फिर बचती आम की गुठली और वो भी मैं भाई को दे देता।
इस साल करीब पांच-छह साल बाद ऐसा हुआ कि मैं और छोटा भाई गर्मियों के मौसम में एक साथ हैं। इसलिए आज जब मैं आमरस बना रहा था तो छिलका मैंने मोटा छीला और भाई ने मुझे पकड़ लिया। फिर वही बचपन वाली धमकी कि माँ से शिकायत करें। लेकिन अब वो डर नहीं कि माँ डांटेगी क्योंकि फ़ोन पर उसने डांटना बंद कर दिया है। फिर आज उसके बाद भाई को आम की गुठली खाने के लिए बचपन वाले जाल में फंसाना और मेरा छिलकों में लगे आम को अंजाम देना।
लेकिन अब भाई सयाना हो गया तो आम की गुठली के जाल में फंसता नहीं और आजकल आम में भी इतना गूदा या रस कहाँ कि उसे छिलकों या आम की गुठली से चुराया जाये।
स्रोत-मेरी रसोई से... |
नानी के घर पर गर्मियों में रोजाना दूध की रबड़ी वाला आमरस बनता था जो मुझे तब पसंद नहीं था लेकिन माँ थोड़ा बहुत डांट-डपट के खिला ही देती। लेकिन जन्मदिन के दिन मैं राजा, बाकी सब प्रजा। उस दिन मेरे लिए रबड़ी अलग होती और आम अलग से काट के मुझे दिया जाता।
मुझे आम बहुत पसंद है। गर्मियों में पहली बार मुझे आम हमेशा नानाजी के घर पहुंचने के बाद ही मिलता था, क्योंकि घर पर मुझे तब तक आम खाने को नहीं मिलते जब तक बारिश नहीं हो जाती। इसके लिए माँ-पापा दोनों से सख्त हिदायत मिली हुई थी लेकिन नानी के घर आपको बारिश हो या न हो टोकने वाला कौन था? वैसे घर पर आम खाने की मनाही इसलिए थी क्योंकि मुझे शरीर पर दाने या फुंसियां निकल आती थी। अब ये बात और है कि मुझे आज तक आम और शरीर के दानों के बीच का कनेक्शन पता नहीं चला। मैंने जानने की कोशिश भी नहीं की क्योंकि इससे यादें मिट जाने का डर लगा रहता है।
मैं आम का बहुत बड़ा लालची हूँ। तभी पिछले साल जब ऑफिस की एक साथी ने मुझे दोस्तों के साथ बाँटने के लिए अपने घर के आम दिए तो मैंने घर पहुँच के सबसे बढ़िया दो आम सबसे पहले अकेले ही खा लिए बाद में दोस्तों को बताया कि उनके लिए आम आएं हैं।
साभार - गूगल इमेजेस |
बचपन में भी घर पर मुझे जब तक आम खाने की मनाही होती थी तब तक मैंगो शेक मिला करता था। मैंगो शेक के लिए आम काटने के बाद हमेशा आम की गुठली बच जाती थी। मुझे आम पसंद था लेकिन आम की गुठली कतई नहीं। मैं गुठली हमेशा मैं छोटे भाई को सरका देता था और खुद छिलकों में लगे हुए आम से संतोष कर लेता।
कई बार मुझे जब मैंगो शेक के लिए आम छीलने को कहा जाता तो मैं जानबूझकर छिलका मोटा छीलता क्योंकि बाद में वो छिलके तो मुझे मिलने थे। इसी बहाने बारिश से पहले घर में आम खाने को भी मिल जाते। खैर इस बात के लिए कई बार माँ की झिड़की भी लग जाती कि ठीक से छीलना है तो छीलो नहीं तो रसोई से नौ दो ग्यारह हो जाओ। फिर बचती आम की गुठली और वो भी मैं भाई को दे देता।
इस साल करीब पांच-छह साल बाद ऐसा हुआ कि मैं और छोटा भाई गर्मियों के मौसम में एक साथ हैं। इसलिए आज जब मैं आमरस बना रहा था तो छिलका मैंने मोटा छीला और भाई ने मुझे पकड़ लिया। फिर वही बचपन वाली धमकी कि माँ से शिकायत करें। लेकिन अब वो डर नहीं कि माँ डांटेगी क्योंकि फ़ोन पर उसने डांटना बंद कर दिया है। फिर आज उसके बाद भाई को आम की गुठली खाने के लिए बचपन वाले जाल में फंसाना और मेरा छिलकों में लगे आम को अंजाम देना।
लेकिन अब भाई सयाना हो गया तो आम की गुठली के जाल में फंसता नहीं और आजकल आम में भी इतना गूदा या रस कहाँ कि उसे छिलकों या आम की गुठली से चुराया जाये।