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गुरुवार, 31 मई 2018

'समय' कुछ कहना चाहता है...

पुराने नगर का एक अलंकरण
 "मैं समय हूँ।" दूरदर्शन पर जब 'महाभारत' की कहानी सुनाने के लिए ये आवाज आती थी तो शायद उस 'समय' को खुद नहीं पता था कि उसे ऐसा भी एक वक़्त देखना होगा, जो बीते समय को ही हमारा दुर्भाग्य बता दे। किसी का भी अतीत उसके वर्तमान का आईना होता है, क्योंकि हमारे वर्तमान की मीनार उसी नींव पर खड़ी होती है।


 अभी जो समय है वो हमें बताने पे तुला है कि एक दौर में हम विश्वगुरु थे, लेकिन कब और कहाँ ये उसे भी नहीं पता। हालाँकि हो सकता है कि उस बात में सच्चाई हो, लेकिन इतिहास तथ्य पर चलता है। ऐसे में अगर एक प्रदर्शनी आपको अपने अतीत के करीब ले जाये, आपको उस समय में जीने का मौका दे और इतना ही नहीं आपको आपकी वैश्विक हैसियत से भी रूबरू कराये तो उससे बेहतर क्या हो सकता है ?

सिंधु सभ्यता से जुड़ा एक खिलौना
 पिछले हफ्ते जब दफ्तर से एक दिन की छुट्टी मिली तो मैं भी पहुँच गया इंडिया गेट के पास नेशनल म्यूजियम, जहाँ 'भारत और विश्व : नौ कहानियों में इतिहास' प्रदर्शनी लगी है। यहाँ न सिर्फ मुझे हिदुस्तान के 20 संग्रहालयों या टाटा ट्रस्ट जैसे कुछ निजी संग्रहों की वस्तुएं देखने को मिली, बल्कि लंदन के ब्रिटिश म्यूजियम से आयी कई तरह की ऐतिहासिक वस्तुओं ने भी मेरा ध्यान खींचा।

 यह प्रदर्शनी दरअसल एक रास्ता है इतिहास के उन रोशन झरोखों में झांकने का, जो कभी हमारे पूर्वजों का वर्तमान हुआ करता था। यह वो गलियारा है जहाँ हम अपने और विश्च के साझा इतिहास में चहलकदमी कर सकते हैं। यह किसी को भी मानव सभ्यता के आदिकाल से सभ्य समाज तक आने की क्रमवार जानकारी तो देती ही है। साथ ही भारत के विश्व इतिहास से जुड़ाव और उसके आधुनिक राष्ट्र बनने तक के सफर से रूबरू कराती है।

मरियम
युद्ध के देवता
 जैसे ही मैंने प्रदर्शनी में प्रवेश किया मुझे ‘साझा शुरुआत’ खंड मिला। इसमें भारत में मिले आदिमानव काल के पत्थर के औजार और उसी जैसे अफ्रीका में मिले एक पत्थर के औजार के बीच तुलना करके देखी जा सकती है कि हमारी और उनकी विकास गाथा में हम कितना इतिहास साझा करते हैं। इसके आगे प्रदर्शनी में दुनियाभर में मिले बर्तनों की समानता दिखती है, जिसने मानव को खाने के भंडारण और उसमें विविधता लाने के लिए प्रेरणा दी।

सिकंदर महान की एक मूर्ति
 आगे बढ़ा तो मुझे ‘पहले शहर’ नाम का खंड मिला, यहाँ मैंने देखा कि कैसे उस शुरुआती समय में भी भारत के आम जनमानस ने सिंधु सभ्यता और उसके नगरों का निर्माण किया और कैसे लगभग उसी समय विकसित हुईं मेसोपोटामिया और मिस्र की सभ्यताएं हमें विश्व इतिहास में करीब लाती हैं। इसके बाद जब मैं आगे बढ़ा तो मेरा सामना ‘साम्राज्य’ खंड से हुआ। यह बताता है कि हम अकेले नहीं थे जिसने दुनिया में साम्राज्यों का दौर देखा। जहां भारत के मौर्य साम्राज्य की झलक यहाँ देखी जा सकती है, वहीं चीन और मिस्र के साम्राज्यों का इतिहास भी यहाँ दिखता है।

इस्लामी कला का एक नमूना 
 इस खंड में विभिन्न साम्राज्यों के सिक्के भी रखे गए हैं जो बताते हैं कि कैसे साम्राज्य अपनी मान्यता के लिए सिक्कों का प्रयोग करते थे। कैसे इन सिक्कों ने व्यक्ति पूजा को स्थापित किया। जब सिक्के इस्लाम जगत में पहुंचते हैं तो कैसे व्यक्ति और राज्य के गुणगान का स्थान कुरान की आयतें सिक्कों पर ले लेती हैं। चीन के सिक्के भी इस खंड में हैं। इन सिक्कों के बीच में छेद है जिसकी वजह इन सिक्कों को रस्सी में बांधकर रखे जाने के लिए सुविधाजनक बनाना था।

 सिक्कों से निकलकर धर्म और राज्य मूर्ति विधा में कैसे पहुंचा और उसने साम्राज्य के वर्णन के साथ-साथ कला और चित्रकारी को नया रूप कैसे दिन इसकी जानकारी मुझे अगले खंड ‘चित्रित और मनोहारी वर्णन’ में मिली। इस खंड में ब्रिटिश म्यूजियम से लायी गई कई कलाकृतियां ऐसी थी जिसने मेरा मन मोहा। मां मरियम, यीशू मसीह के अलावा कबीलाई ईश्वर, युद्ध के देवता और काष्ठ की बनी कई मूर्तियों के साथ कपड़े पर उकेरी गई इस्लामिक चित्रकारी ने  इतिहास के खूबसूरत पहलू की जानकारी करायी। आगे ‘भारतीय समुद्र व्यापार’ खंड में भारत के विश्व के साथ होने वाले समुद्री व्यापार की झलक देखने को मिली। यह खंड दिखाता है कि कैसे व्यापारिक आदान-प्रदान ने हमारी संस्कृति को प्रभावित किया।
राणा संग्राम की ढाल

रोमन शैली की काली मिर्च की डिब्बी
 यहां ब्रिटिश संग्रहालय से आयी एक 300 से 400 ईसवी की एक पुरानी काली मिर्च छिड़कने की डिब्बी ने मुझे सोचने पर मजबूर किया कि मानव सभ्यता में हमारा वर्तमान कितना कलाहीन होता जा रहा है। उस समय में मानव ने कैसे इतनी मामूली वस्तुओं में भी कला को इतना निखरा रुप दिया। यह कहीं ना कहीं वर्तमान में हमारे कलाबोध के ह्रास को दिखाती है। 

अकबर की युद्ध पोशाक
 इससे आगे  ‘दरबारी संस्कृति’ खंड में मुझे मुगल दरबार की शानोशौकत दिखी। इसमें अकबर की युद्ध पोशाक और तलवार के साथ राजपूतों के शौर्य को दर्शाती कला से परिपूर्ण राणा संग्राम सिंह की एक ढाल ने थोड़ी देर मुझे वंही खड़े रखा। इस ढाल पर उनकी कई लड़ाइयों की चित्रकारी की गयी है। इतना ही नहीं इस खंड में मैंने ईसाई संस्कृति के राजसी प्रतीक भी देखे।

 इसके बाद ‘आजादी के जुनून’ में भारत की आजादी की लड़ाई के कई पहलू और अंत में ‘असीमित काल’ खंड में वर्तमान में जारी युद्धक सोच और उससे समाज पर पड़ते प्रभाव यहाँ बहुत अच्छे से दिखाया गया है।



 कुल मिलाकर इसे एक बार जरूर देखा जा सकता है। अभी तो यह 30 जून तक यहाँ लगी है, तो देख लीजिये, क्योंकि वर्तमान में जब हम इतिहास का कुछ बिखरा कुछ धुंधला स्वरूप देख रहे हैं तो इस तरह की प्रदर्शनियां उसे एक नयी रोशनी देती हैं।

 साथ एक वीडियो भी साझा कर रहा हूँ...