हाल में कुछ समय मिला तो बस उठाया अपना बस्ता और निकल पड़े बीकानेर की ओर साथ में बचपन के एक साथी को भी ले लिया।
सुबह-सुबह स्टेशन पर उतरते ही सबसे पहले हमने देशनोक का टिकट लिया। कई साल पहले जब ' आई एम कलाम ' फिल्म देखी थी, तब से मैं वहां जाने को लेकर उत्सुक था।
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करणी मंदिर का मुख्य द्वार |
यहाँ पर प्रसिद्ध करणी माता का मंदिर है, राजस्थान से बाहर के लोग इसे ' चूहों वाले मंदिर ' के तौर पर जानते हैं। आस-पास जानकारी करने पर पता चला कि करणी माता चारण समुदाय (चरवाहा) समुदाय में जन्मी थीं, इसलिए चारण समुदाय के लोगों में इस मंदिर की बहुत मान्यता है। नवरात्रों में यहाँ मेला लगता है तब बड़ी संख्या में लोग यहाँ जुटते हैं।
इस मंदिर की खास बात है कि यहाँ आपको हर जगह चूहे नजर आएंगे। दूध पीते, प्रसाद खाते , लड्डू खाते, चौखटों पर, दालान में और सीढ़ियों पर हर जगह बस चूहे ही नजर आएंगे। इन्हें यहाँ के लोग ' काबा ' कहते हैं।
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मंदिर में दूध पीते "काबा" |
माना जाता है कि मंदिर में सात सफ़ेद काबा भी हैं जो नसीब वालों को ही दिखते हैं। खैर मैंने भी डेढ़ घंटे किस्मत आजमाई लेकिन "सफ़ेद काबा" मेरे नसीब में नहीं।
मैं कुछ और ज्यादा जानना चाहता था तो मैं यहाँ स्थित पुराने मंदिर की ओर गया। इस पुराने मंदिर में एक गुफा जैसी एक जगह है जिसके बारे में कहा जाता है कि करणी माता की मूर्ति यंही प्रकट हुई थी और बाद में उसे नए मंदिर में स्थापित कर दिया गया। वर्तमान में जो नया मंदिर देशनोक स्टेशन के पास है, उसे बीकानेर के महाराज गंगा सिंह ने बनवाया था।
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माना जाता है कि इसी स्थान पर करणी माता प्रकट हुई थीं |
नए मंदिर का दरवाजा राजपूत-मुग़ल शैली में सफ़ेद संगमरमर से बना है, जिस पर कई देवी-देवताओं की मूर्तियां हैं। पहली झलक में यह बेल-बूटों से सुसज्जित द्वार लगेंगे लेकिन जनाब जरा गौर से देखना इन्हें, इन बेल-बूटों के बीच में आपको प्रकृति के कई जीव नजर आएंगे।
पुराने मंदिर के पुजारी ने बताया कि इस मंदिर में देवी की जो मूर्ति है उसमें त्रिशूल बांयें हाथ में है और यह भारत का इकलौता ऐसा मंदिर है जिसमें किसी देवी के बांयें हाथ में त्रिशूल है। यहां पुराने मंदिर में लगे पेड़ को भी वो करीब 700 साल पुराना बताते हैं। अब मैंने भी उनकी बात मान ली, क्योंकि मैं उसका कोई वैज्ञानिक परीक्षण नहीं कराने वाला था।
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संगमरमर पर उकेरा गया गिरगिट, सांप |
एक और रोचक बात मुझे जो पुजारी ने बताई, वो यह कि अगर किसी के पैरों में आकर कोई चूहा यहाँ मर जाए तो उसे चांदी या सोने का चूहा चढ़ावे में देना होता है। मरे हुए चूहे का मंदिर में सफाई करने वाले लोग सम्पूर्ण विधि-विधान के साथ अंतिम संस्कार कर देते हैं। यहाँ मंदिर में चूहों की सुरक्षा के लिए पूरे दालान को जाल से ढका गया है ताकि कोई पक्षी उन्हें उठाकर ना ले जाए।
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करणी माता के पुराने मंदिर का विग्रह |
वैसे पुजारी ने यह भी बताया कि यहाँ रोज कई चूहे मरते हैं, लेकिन अगर वो किसी के पैर के नीचे आकर मरते हैं तो ही बहुमूल्य धातु का चूहा चढ़ाना पड़ता है। गनीमत समझो कि हम दोनों के पैर के नीचे कोई चूहा नहीं आया।
करणी माता के दोनों मंदिरों में हजारों चूहे आपको मिलेंगे। लोग इन्हें प्रसाद चढ़ाते हैं, इनका झूठा खाते-पीते हैं। यहाँ के लोग इन काबाओं को बहुत पवित्र मानते हैं। यहाँ आस-पास लोगों से बात करने पर पता चला कि चूहों का झूठा खाने-पीने के बावजूद आजतक देशनोक ने कोई बीमारी नहीं हुई और ना ही कभी प्लेग फैला। इतना ही नहीं कई वैज्ञानिक भी यहाँ आकर इस अचंभित कर देने वाली घटना की जांच कर चुके हैं लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं आया।
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मंदिर में 700 साल पुराना पेड़ |
यहाँ की लोक कथाओं के अनुसार यहां मंदिर में मरने वाले काबा का अगला जन्म इंसान के रूप में होता है और वो चारण समुदाय में पैदा होता है। खैर विकिपीडिया (https://en.wikipedia.org/wiki/Karni_Mata_Temple) पर इस बारे में एक और लोक कथा का वर्णन है लेकिन हमारी यात्रा के दौरान हमें किसी ने इस बारे में नहीं बताया।
फ़िलहाल ये यात्रा यहीं समाप्त नहीं हुई। बीकानेर की गलियों से और भी बहुत कुछ आना बाकी है, देशनोक से बीकानेर वापस तो पहुँचने दीजिये जनाब !
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पुराने मंदिर का मनोहारी दृश्य,
इसमें ऊपर लगे सुरक्षा जाल को देखा जा सकता है |